साफ़ दिखाई देता है कि वर्तमान में सरकारी स्कूलों को कौशल विकास के प्रति गंभीरता दिखाते हुए अपने पाठ्यक्रम में बदलाव करना होगा। यह अनिवार्य बदलाव मुख्य रूप से दो भिन्न स्वरूपों में होना चाहिए- पाठ्यक्रम और प्रक्रिया।इसमें दो राय नहीं कि भारत अपनी तेज़ी बढ़ती आबादी का दबाव झेल रहा है। यूनिसेफ़ का अनुमान है कि भारत में रोज़ाना तकरीबन 67,385 बच्चे पैदा होते हैं। इस गति से बढ़ती जनसंख्या का दबाव अगले 20 वर्षों में रोज़गार माध्यमों पर काफ़ी असर दिखाएगा और तब यह बहुत मायने रखेगा कि विकास की प्रक्रिया में किसी महिला या पुरुष ने बाज़ार की मांग के अनुसार स्वयं के कौशल को कितना विकसित किया है! उसके कौशल विकास में ज़िंदगी से जुड़े पहलू व जिन्हें हम सॉफ़्ट स्किल कहते हैं, वे ज़रूर शामिल होंगे।
ज़मीनी सच:
रोज़गारसृजन की क्षमताद सेंटर फ़ॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) भारत में बेरोज़गारी की वर्तमान दर को 6.5 प्रतिशत के आस-पास आंकता है। इसका मतलब है कि इस समय भारत में लगभग 28 से 30 लाख लोग अपने लिए एक स्थायी और फ़ायदेमंद रोज़गार तलाश रहे हैं। यह संख्या वर्तमान जन्मदर के तकरीबन बराबर है जो अगले 10 साल में दोगुनी हो जाएगहालांकि बेरोज़गारी की बढ़ती समस्या के बहुत-से कारण हैं। सभी जानते हैं कि कोविड -19 की महामारी से अर्थव्यवस्था सुस्त पड़ गई है जबकि पहले ही बड़े से लेकर कुटीर उद्योगों तक में मंदी देखने को मिल रही है, इस तरह के अनेक कारणों के बीच एक तथ्य यह भी है कि भारत का युवा रोज़गार पाने की चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार नहीं है। तकरीबन 48 फ़ीसदी रोज़गारप्रदाता मानते हैं कि उन्हें अपनी ज़रूरतों के लिए जिस प्रकार की कुशलता चाहिए, वह उन्हें नहीं मिल पा रही है, ख़ासकर आईटी और इस क्षेत्र से जुड़ी सेवाओं के क्षेत्र में। कौशल विकास और व्यावसायिक प्रशिक्षण को लेकर जब भी उद्योग जगत में आपसी चर्चा होती है यह बात निकलकर सामने आती है कि स्कूलों में इन्हें वरीयता नहीं दी जाती, इस तुलना में वयस्कों के कौशल विकास को अधिक महत्व मिलता है जबकि होना इसका उल्टा चाहिए।
जल्द शुरुआत की ज़रूरत
भारत के 15 लाख स्कूलों में तकरीबन 12 लाख सरकारी स्कूल हैं, जहां 12 करोड़से ज़्यादा बच्चे पढ़ते हैं। अगर भारत को आनेवाले दशक में अपना रोज़गार ढांचा मज़बूत बनाना है तो उसे अधिक कुशल, उद्यमी और लाभ हासिल करने में दक्ष युवाओं की ज़रूरत है और इसके लिए ज़रूरी है कि देश के सरकारी और सरकार से सहायता प्राप्त स्कूलों के पाठ्यक्रम में आमूल-चूल बदलाव लाया जाए। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (2020) इस दिशा में एक भविष्योन्मुखी मज़बूत कदम कही जा सकती है जो शिक्षा व्यवस्था में बड़े बदलावों की ओर इशारा करती है, जैसे स्कूलों में कौशल विकास कार्यक्रम की शुरुआत कक्षा नवीं के बजाय छठी से किया जाना। दूसरी ओर, इस संदर्भ में यह तर्क दिया जा सकता है कि इस तरह के कार्यक्रम जारी हैं और नैशनल स्किल्स क्वालिफ़िकेशन फ़्रेमवर्क द्वारा प्रमाणित पाठ्यक्रम स्कूलों में विभिन्न स्तरों पर संचालित भी हो रहे हैं, लेकिन कौशल विकास के कार्यक्रमों में ढांचागत बदलाव की अनिवार्यता को किसी भी सूरत में अनदेखा नहीं किया जा सकता। यह अनिवार्य बदलाव मुख्य रूप से दो भिन्न क्षेत्रों में होना चाहिए- पाठ्यक्रम और प्रक्रिया।
पाठ्यक्रम का सामयिक प्रारूप
कोर्स और विषय में विविधताएं ज़रूरी है, साथ ही रोबॉटिक्स, आर्टिफ़िशियल इंटेलीजेंस (AI), द्रोन तकनीक, मोबाइल गेमिंग, डिजिटल फ़ोटोग्राफ़ी जैसे आज के विषयों-मुद्दों को पाठ्यक्रम में जगह मिलनी चाहिए। आमने-सामने रहकर शिक्षण-प्रशिक्षण प्राप्त करने की परिपाटी भी बदलनी होगी। नए दौर के मुताबिक अब वर्चुअल रियलिटी का प्लेटफ़ॉर्म/ऐप तैयार किया जाना चाहिए, जिसमें शिक्षक और छात्र रिमोट से संचालित उपकरणों का उपयोग कर आसानी से लॉग इन कर सकजैसा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में बताया गया है यह पाठ्यक्रम भी कक्षा छठी से शुरू होना चाहिए, जिसमें विषयों को सॉफ़्ट स्किल्स से हार्ड स्किल्स तक कक्षाओं के अनुसार निर्धारित किया जा सके। उदाहरण के लिए प्राइमरी, मिडिल, हाई और हायर सेकंडरी स्कूलों को ध्यान में रखकर छात्रों के लिए पाठ्यक्रम तैयार किया जाना चाहिए।
प्रक्रिया में बदलाव की ओर कदम
निश्चित ही वर्तमान ढांचे में परिवर्तन की प्रकिया शुरू करनी होगी और पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP) जो लागत पर आधारित है, उन एजेंसियों को दक्षता और गुणवत्ता के लिए प्रेरित नहीं करेंगी।
ऑनलाइन प्रशिक्षण के लिए प्रावधान बनाने होंगे। एक एआई मॉडल होने से छात्र को उसकी मेधा के अनुसार विषय विशेष से परिचित कराया जा सकता है। जितनी जल्दी बच्चे का उसकी पसंद के विषयों से परिचय होगा, वह बेहतर तालमेल बनाएगा। इससे नए विषयों को बेहतर स्वीकार्यता भी मिलेगी।
यह ध्यान रखना होगा कि प्रक्रिया में तकनीकी का इस्तेमाल मुख्य प्राथमिकता हो, केवल स्मार्ट क्लास से काम नहीं चलनेवाला है।
इसके लिए शिक्षा मंत्रालय, कौशल विकास मंत्रालय, राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान व प्रशिक्षण परिषद (NCERT) और नीति आयोग के बीच स्पष्ट सामंजस्य होना चाहिए।
अब समय आ गया है कि कौशल विकास और व्यावसायिक प्रशिक्षण को बच्चों को दिए जानेवाले अतिरिक्त व्यावहारिक ज्ञान की तरह न देखा जाए। नया पाठ्यक्रम मुख्य विषयों के साथ समान महत्व से जुड़ा हो। गणित और विज्ञान की तरह इनके आधार पर भी छात्र का मूल्यांकन किया जाए। स्कूल की रचनात्मक और योगात्मक परीक्षाओं में कौशल विकास से संबद्ध विषय भी शामिल हों। कुल-मिलाकर सभी स्कूल
जानेवाले बच्चोंका कौशल विकास के क्षेत्र से गंभीर जुड़ाव विकसित करना इस दौर की अनिवार्य मांग है। इस मामले में, सरकारी स्कूल में दाखिला लेने वाले बच्चों का विशेष ध्यान देने की ज़रूरत है।
(इस लेख के लेखक श्री विनेश मेनन ‘शिक्षा, कौशल और परामर्श सेवा, ऐमपर्सऐंड ग्रुप’ के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं )
More News Click Here
Discover thousands of colleges and courses, enhance skills with online courses and internships, explore career alternatives, and stay updated with the latest educational news..
Gain high-quality, filtered student leads, prominent homepage ads, top search ranking, and a separate website. Let us actively enhance your brand awareness.