छुआछूत || Untouchability || Moral Values || Hindi Story ||
भारत महान संतों की भूमि रही है. मानवता के पुजारी रामकृष्ण परमहंस भी उनमे से एक थे. ये उनका ही प्रताप था कि नरेन्द्र नाम का एक साधारण बालक उनकी शरण में आकर स्वामी विवेकानंद बन गया और उनकी दी हुई शिक्षा से पूरे विश्व को प्रकाशमान किया.
आज हम आपके साथ श्री रामकृष्ण परमहंस के एक प्रेरक प्रसंग साझा कर रहे हैं।
एक समय की बात है रामकृष्ण परमहंस तोतापुरी नामक एक संत के साथ ईश्वर व आध्यात्म पर चर्चा कर रहे थे. शाम हो चली थी और ठण्ड का मौसम होने के कारण वे एक जलती हुई धुनी के समीप बैठे हुए थे.
बगीचे का माली भी वहीँ काम कर रहा था और उसे भी आग जलाने की ज़रुरत महसूस हुई. वह फ़ौरन उठा और तोतापुरी जी ने जो धुनी जलाई थी उसमे से लकड़ी का एक जलता हुआ टुकड़ा उठा लिया.
“धूनी नी छूने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई?”, तोतापुरी जी चीखने लगे…” पता नहीं ये कितनी पवित्र है.”
और ऐसा कहते हुए वे माली की तरफ बढ़े और उसे दो-चार थप्पड़ जड़ दिया.
रामकृष्ण यह सब देख कर मुस्कुराने लगे.
उनकी मुस्कराहट ने तोतापुरी जी को और भी खिन्न कर दिया.
तोतापुरी जी बोले, ” आप हंस रहे हैं… यह आदमी कभी पूजा-पाठ नहीं करता है, भगवान का भजन नहीं गाता है… फिर भी इसने इसने मेरे द्वारा प्रज्वलित की गयी पवित्र धूनी को स्पर्श करने की चेष्टा की… अपने गंदे हाथों से उसे छुआ…इसीलिए मैंने उसे ये दंड दिया.”
रामकृष्ण परमहंस शांतिपूर्वक उनकी बात सुनते रहे और फिर बोले, ” मुझे तो पता ही नहीं था की कोई चीज छूने मात्र से अपवित्र हो जाती है… अभी कुछ ही क्षण पहले आप ही तो हमें –
“एको ब्रह्म द्वितीयो नास्ति”
का पाठ पढ़ा रहे थे… आप ही तो समझा रहे थे कि ये सारा संसार ब्रह्म के प्रकाश-प्रतिबिम्ब के अलावा और कुछ भी नहीं है.
और अभी आप अपने माली के धूनी स्पर्श कर देने मात्र से अपना सारा ज्ञान भूल गए… और उसे मारने तक लगे. भला मुझे इसपर हंसी नहीं आएगी तो और क्या होगा!”
परमहंस गंभीरता से बोले, ” इसमें आपका कोई दोष नहीं है, आप जिससे हारे हैं वो कोई मामूली शत्रु नहीं है…वो आपके अन्दर का अहंकार है, जिसे जीत पाना सरल नहीं है.”
तोतापुरी जी अब अपनी गलती समझ चुके थे. उन्होंने सौगंध खायी की अब वो अपने हंकार का त्याग देंगे और कभी भी छुआछूत और ऊंच-नीच का भेद-भाव नहीं करेंगे.
स्वामी रामकृष्ण परमहंस का उपदेश है कि किसी भी व्यक्ति को, चाहे वो किसी भी कुल का हो…चाहे वो धनवान हो या निर्धन… कभी ये नहीं भूलना चाहिए कि हम सबको बनाने वाला एक ही है. हम सभी परमात्मा की संतान हैं और एक सामान हैं.
Moral of the story
Moral: छुआछूत की प्रथा को लोगों के कुछ समूहों के भेदभाव और उनकी जाति और सामाजिक समूहों के आधार पर उनके अमानवीय व्यवहार के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। छुआछूत इतनी पुरानी प्रथा है कि यह भारत में कई लोगों की जड़ों पर कसकर अंतर्निहित है। ... यह उस समाज की कई बुराइयों में से एक था, जिसके खिलाफ स्वतंत्र भारत के नेता लड़ रहे थे।
कभी भी किसी से भेदभाव न करें।