शेर और भेड़िया - Sher Aur Bhediya | Hindi Moral Stories
भेड़ों को देखकर भेड़िये के मुँह में पानी आ गया और वह एक झाड़ी में छिप कर किसी भेड़ या मेमने के वहाँ आने की प्रतीक्षा करने लगा। उसे पूरी आशा थी कि कोई न कोई भेड़ उधर जरूर आएगी।
थोड़ी ही देर में एक मेमना घास चरते हुए अपने झुण्ड से अलग होकर उसे झाड़ी के पास पहुँच गया, जहाँ भेड़िया छिपा बैठा था भेड़िये ने तुरन्त मेमने को अपने मुँह में दबोच लिया।
अब भेड़िये के मन में विचार आया कि क्यों न मेमने को ऐसे स्थान पर जाकर खाया जाए, जहाँ कोई अन्य जानवर ना आता हो। ताकि भोजन शांति के साथ किया जा सके।
दुर्भाग्यवश रास्ते में उसे एक शेर मिला जो स्वयं भी शिकार की खोज में था। भेड़िये के मुँह में मेमना देखकर शेर जोर से गुर्राया और बोला, “जहाँ खड़े हो वहीं रुक जाओ, एक कदम भी आगे मत बढ़ाना।”
भेड़िया डर के मारे बुत बनकर वहीं खड़ा हो गया और उसके मुँह से मेमना छूटकर जमीन पर गिर गया। शेर ने भेड़िये का भोजन उठाया और उसे अपने मुँह में दबाकर अपनी गुफा की ओर चल दिया।
वह बिना अधिक प्रयास किए ही खाना मिलने पर खुश था। अभी शेर कुछ ही कदम बढ़ा था कि भेड़िया धीरे से बुदबुदाया, “यह तो दिन दहाड़े चोरी है। क्या जंगल के राजा को किसी से शिकार छीनना शोभा देता है?
राजा को तो अपनी प्रजा का ध्यान रखना चाहिए लेकिन यहाँ तो उल्टा ही हो रहा है। राजा ही सरासर अन्याय कर रहा है। किसी का हक छीन रहा है। यदि हमारे साथ कोई दूसरा प्राणी अन्याय करता तो हम उसकी शिकायत राजा से करते।
पर अब राजा की शिकायत किस से करें। कहाँ जाकर इस अन्याय के विरुद्ध गुहार लगाएँ।” शेर ने भेड़िये के शब्द सुने तो वह जोर से हंस पड़ा।
वह पीछे पलटा और उसने भेड़िये से कहा, “कितने आश्चर्य की बात है कि एक चोर न्याय की बात करता है। क्या तुम्हें ये मेमना उपहार में मिला था? तुमने भी तो इसे झाड़ियों में छुप कर चुराया है।
क्या यह न्यायपूर्ण है? क्या एक चोर का चोरी के विषय में न्याय माँगना शोभनीय है?” शेर की बातें सुनकर भेड़िया शर्मिन्दा हो गया और वहाँ से नौ दो ग्यारह हो गया।
Moral of the story
अन्याय चाहे छोटा हो या बड़ा, अन्याय होता है।