नटखट खरगोश - Natkhat Khargosh | Hindi Moral Stories
बहुत पुरानी बात है -- एक बड़े से पेड़ के नीचे एक मादा खरगोश अपने चार बच्चों के साथ रहती थी। एक दिन मादा खरगोश खाना पकाने के लिए सामान लाने बाजार जा रही थी।
उसने अपने बच्चों को बुलाकर कहा, "तुम लोग बाहर खेलने जा सकते हो पर श्रीमान् गुस्सैल के बगीचे की ओर भूल से भी मत जाना।" चीकू, टीटू, और मीटू, माँ की बात मानकर उछलते कूदते पास की बेरी के पास जाकर बेर चुनने लगे।
नटखट पीटू ने दौड़ लगाई और सीधा श्रीमान् गुस्सैल के फाटक के नीचे से उनके बगीचे में घुस गया। वहाँ उसने जी भरकर सलाद के पत्ते, बींस और नरम-नरम मूली का मजा लिया।
श्रीमान् गुस्सैल पत्तागोभी बो रहे थे। अचानक उनकी दृष्टि पीटू पर पड़ी। वह दिल्ली, "चोर-चोर, रुक! भागता कहाँ है?"
पीटू घबराकर इधर-उधर भागने लगा। उसका जूता आलू की क्यारी में छूट गया पर वह बचता-बचाता खिड़की से कूदकर, फाटक के नीचे से निकलकर अपने घर वापस आ गया।
माँ बाजार से लौट आई थी। उसने चीकू, टीटू और मीटू को रोटी-दूध और बेर खाने को दिया पर पीटू को बिना कुछ खिलाए सोने भेज दिया। माँ ने बिना कुछ कहे उसे उसकी शरारत की सजा दे दी थी।
Moral of Story
शिक्षा : लालच से बड़ा कोई रोग नहीं है।