मुर्ख बागला और नेवला - Murk Bagula Aur Nevla | Hindi Moral Stories
यह कहानी पंचतंत्र के मित्रभेद भाग पर आधारित है।
किसी जंगल में एक बहुत बड़ा पेड़ था जिसके खोल में कुछ बगुले रहते थे। उसी पेड़ की जड़ में एक साँप भी रहता था । वह बगलों के छोटे-छोटे बच्चों को मौका देख कर खा जाता था।
उनमें से एक बगुला साँप द्वारा अपने बच्चों के बार-बार खाये जाने पर बहुत दुःखी था। एक दिन वह निराश हो कर नदी के किनारे अपना मन हल्का करने के लिए अकेले जा बैठा।
उसे इतना दुखी देखकर, उस नदी में रहने वाला एक केकड़ा पानी से निकल कर बहार आया और उससे बोला, “क्या बात है दोस्त, तुम इतने उदास क्यों हो?”
बगुले ने कहा – “भाई, बात यह है कि जिस पेड़ पर मैं रहता हूँ उस की जड़ में एक साँप भी रहता है और वह हमारे बच्चों को बार-बार खा जाता है । मुझे इस मुश्किल से बचने का कोई उपाय नहीं सूझ रहा है की इस साँप से कैसे छुटकारा पाया जाए । तुम्हें कोई उपाय सूझ रहा हो तो बताओ।”
केकड़े ने मन में सोचा, ’यह बगला हमेशा से मेरा दुश्मन रहा है, तो इसे ऐसा उपाय बताऊंगा जिससे साँप के साथ-साथ इसका भी नाश हो जाय”
यह सोचकर केकड़ा बोला “मित्र एक काम करो, मांस के कुछ टुकडे़ लेकर नेवले के बिल के सामने डाल दो । इसके बाद बहुत से टुकड़े उस बिल से शुरु करके साँप के बिल तक बखेर दो । नेवला उन टुकड़ों को खाता-खाता साँप के बिल तक आ जायगा और वहाँ साँप को देखकर उसे भी मार डालेगा ।”
बगुले ने ऐसा ही किया । नेवले ने साँप को तो खा लिया किन्तु साँप के बाद उस वृक्ष पर रहने वाले बगुलों को भी खा डाला ।
बगुले ने केकड़े के दिए हुए उपाय के बारे में तो सोचा, किन्तु उसके अन्य दुष्परिणाम नहीं सोचे और उसे अपनी मूर्खता का फल मिला।
Moral of the story
Moral: पंचतंत्र की हर कहानी जीवन को सही तरह से जीने का पाठ पढ़ाती है।
इस कहानी से हमे यह सीख मिलती है की किसी भी दी गयी सलाह पर आँख बंद करके भरोसा नहीं करना चाहिए। हमे किसी भी काम को करने से पहले उसके सही या गलत परिणाम अच्छे से सोच लेने चाहियें ।