लालची बहू - Lalchi Bahu | Hindi Moral Stories
एक बार की बात है एक शहर में एक परिवार रहता था जिसमे एक लड़का और उसके माँ बाप थे। वह बहुत अमीर तो नहीं थे लेकिन उनमें प्यार बहुत था। कुछ दिनों के बाद उस लड़के की शादी हो गयी।
उसकी शादी सलोनी नाम की लड़की से हुई वह बहुत लालची थी। वह अपने पति को किटी पार्टी में जाने के लिए बार बार नए कपडे और गहने लाने को बोलती थी। उसके पति ने उसको समझाया की अपने बराबरी वालों से ही दोस्ती करना चाहिए।
अगर तुम महीने में 10 बार किटी पार्टी में जाओगी तो तुमको हर बार नए कपडे और गहने कौन दिलाएगा। लेकिन वह अपने पति से ही झगड़ा करना शुरू कर देती थी और बोलती थी की अगर में नए कपडे गहने पहनकर नहीं जाउंगी तो मेरी सहेलियाँ मेरा मज़ाक उड़ाएंगी।
तुम ज्यादा कमाने की तो सोचते नहीं बल्कि मुझे ही रोकते रहते हो। इसके बाद वह अपनी सास के पास गयी और बोली माँ जी आप मुझे अपने गहने दे दीजिये। मुझे किटी पार्टी में पहन कर जाना है।
उसकी सास हैरान हो कर बोली हमारे समय में बहू अपनी सास को गहने रखने के लिए देती थी लेकिन तु मुझसे ही गहने मांग रही है। उसकी इन हरकतों से सारा परिवार दुखी था। एक दिन सलोनी की सहेली शिल्पा घर आयी।
उसने सलोनी की सास से सलोनी के बारे में पूछा। उनने बताया की सलोनी पार्टी में गयी है। शिल्पा ने सलोनी की सास से पूछा आप इतनी दुखी क्यों दिख रही है। तब उनने सारी बात बताई की सलोनी किस तरह बार बार नए गहने और कपडे की डिमांड करती है और सारे पैसे इन पर ही खर्च कर देती है।
वह शिल्पा से पूछती है की ज्यादा जरुरी क्या है रोटी या ये दिखावा शिल्पा ने कहा की जरुरी तो रोटी ही है। लेकिन सलोनी को यह बात समझानी होगी। सलोनी की सास ने पूछा वह कैसे। इसके बाद शिल्पा ने कहा देखते जाइए।
शिल्पा ने अपने जितने भी गहने और नए कपडे थे सब लाकर सलोनी के घर रख दिए और उनका सारा राशन और फर्नीचर लेकर अपने घर चली गयी। जब सलोनी घर आयी तो अपने अलमारी में नए गहने और कपडे देखकर बहुत खुश हुई।
इसके बाद वह अपनी सास से बोली यह किसके है तो उसकी सास बोली यह सब तेरे है। तुझको अब जितना बदल कर पहनना है पहन ले। सलोनी उनमे से नए कपडे और गहने पहनकर घर में घूमने लगी।
कुछ देर के बाद वह जब रसोई में गयी तो उसने देखा की घर का सारा राशन गायब था। राशन के डिब्बों में गहने थे। वह अपनी सास से बोली यह क्या है घर का सारा राशन और फर्नीचर कहाँ गया।
उसकी सास बोली वह सब बेचकर ही तेरे लिए नए गहने और कपडे लेकर आये है। अब तू इनको ही बदल बदल कर पहन। सलोनी बोली लेकिन गहनों से पेट थोड़ी भरेगा खाना तो खाना ही पड़ेगा।
तभी सलोनी की सहेली शिल्पा भी आ गयी। उसने कहा जब पहले तुम्हारी सास ने तुमको समझाया तब तुम नहीं मानी। इसलिए हमने यह सब किया।
अगर तुमको लगता है की तुम्हारा पति पर्याप्त नहीं कमाता तो तुम खुद नौकरी क्यों नहीं करती। तुमको इन फ़ालतू के दिखावे से बचकर अपने घर पर ध्यान देना चाहिए। अब सलोनी को अपनी गलती का अहसास हो चूका था।
Moral of Story
सीख: हमें फिजूलखर्ची से बचकर जरुरी चीज़ो पर ध्यान देना चाहिए।
रितेश के तीन खरगोश राजा
रितेश का कक्षा तीसरी में पढ़ता था। उसके पास तीन छोटे प्यारे प्यारे खरगोश थे। रितेश अपने खरगोश को बहुत प्यार करता था। वह स्कूल जाने से पहले पाक से हरे-भरे कोमल घास लाकर अपने खरगोश को खिलाता था। और फिर स्कूल जाता था। स्कूल से आकर भी उसके लिए घास लाता था।
एक दिन की बात है रितेश को स्कूल के लिए देरी हो रही थी। वह घास नहीं ला सका , और स्कूल चला गया। जब स्कूल से आया तो खरगोश अपने घर में नहीं था। रितेश ने खूब ढूंढा परंतु कहीं नहीं मिला। सब लोगों से पूछा मगर खरगोश कहीं भी नहीं मिला।
रितेश उदास हो गया रो-रोकर आंखें लाल हो गई। रितेश अब पार्क में बैठ कर रोने लगा। कुछ देर बाद वह देखता है कि उसके तीनों खरगोश घास खा रहे थे , और खेल रहे थे। रितेश को खुशी हुई और वह समझ गया कि इन को भूख लगी थी इसलिए यह पार्क में आए हैं। मुझे भूख लगती है तो मैं मां से खाना मांग लेता हूं। पर इनकी तो मैं भी नहीं है। उसे दुख भी हुआ और खरगोश को मिलने की खुशी हुई।
नैतिक शिक्षा – जो दूसरों के दर्द को समझता है उसे दुःख छू भी नहीं पता।