घर के संस्कार - Ghar Ke Sanskar | Hindi Moral Stories
चंद्रकांत और सोमनाथ एक ही क्लास में पढ़ते थे और वे एक दूसरे के पड़ोसी भी थे। सोमनाथ पढ़ाई के साथ-साथ खेलने में भी अच्छा था और चंद्रकांत स्कूल छूटने के बाद सिर्फ खेलता और गांव भर घूमता रहता था।
एक दिन स्कूल में खेल दिवस आयोजित किया था और सोमनाथ ने कई खेल में हिस्सा लिया था। चंद्रकांत ने खेल दिवस पर कोई भी खेल में हिस्सा नहीं लिया था, वह सिर्फ अपने दोस्तों के साथ ग्राउंड पर दूसरे छात्रों का मजाक उड़ा रहा था।
अगले दिन स्कूल में प्राइज वितरण समारोह हुआ, सोमनाथ ने कई ईनाम जित लिए थे। चंद्रकांत को कई घंटे बेंच पर खड़ा किया गया। चंद्रकांत ने यह बात अपनी माँ को बताई। उसकी माँ ने उसे अपनी बेइज़्ज़त समझा। वह सोमनाथ के घर जा कर उसकी माँ से उलाहना देने ली, “अरे इनाम क्या मिल गया है कि सारे स्कूल में नचा-नचा कर दिखा रहा था। और हमारे चंद्रकांत को बेंच पर खड़ा करवा दिया।”
“किसने खड़ा करवा दिया बेंच पर? सोमनाथ ने?”” सोमनाथ की माँ ने पूछा। उन्हें पूरी स्थिति का पता नहीं था।
“हाँ, और क्या?” चंद्रकांत की माँ ने गुस्से से कहा।
“सोमनाथ को क्या पड़ी है जो बेंच पर खड़ा करवाएगा। पढ़ाई नहीं की होगी इसलिए रखा होगा।” सोमनाथ की माँ ने कहा।
“अरे तुम लोग दुश्मनी निकलवाते हैं। जलते हैं कि हम अच्छा खाते हैं अच्छा पहनते है।” चंद्रकांत की माँ ने कहा।
मगर सोनू की माँ ने धीरज से काम लिया। बोली, “कल स्कूल चल कर पता करेंगे की हुआ क्या था।’”
“मैं देख लूंगी एक-एक को। स्कूल के मैनेजर से कह कर उस मास्टरनी को न निकलवा दिया तों कहना। जब देखो तब हमारे चंद्रकांत को सजा देती रहती है। अरे, और भी तो बच्चे हैं स्कूल में।’” चंद्रकांत की माँ का गुस्सा बढ़ता ही जा रहा था।
तभी सोमनाथ घर में आया। आते ही उसने उत्साह में कहा, “माँ, आज बड़ा ही मजा आया!!”
“हाँ, मजा क्यों नहीं आया होगा? चंद्रकांत को बैंच पर खड़ा करवा कर तुम्हे मजा जो आ रहा है।” चंद्रकांत की माँ बोल पड़ी।
सोमनाथ सहम गया। उसे यह पता था कि चंद्रकांत को बैच पर खड़ा किया गया था। वह धीरे से बोला, “चाची, चंद्रकांत दो दिन से होम वर्क नहीं करके ले जा रहा है। इसीलिए उसे सजा मिली। मैंने कहा मेरी कॉपी से उतार ले। वह भी वह नहीं करता।”
“हाँ, तू तो बहुत तेज है। देख लूंगी सबको” कहती हुई वह चली गई।
सोमनाथ की माँ चंद्रकांत की माँ को देखती रह गई। फिर उन्होंने सोमनाथ के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, “चल, बैग रख कर हाथ मुँह घो ले। स्कूल से इतनी देर में क्यों आया?”
“माँ देखो मुझे कितने सारे इनाम मिले है।” सोमनाथ अपने इनाम अपनी माँ को दिखते हुए बोला।
Moral of the story
Moral वो कहते है न संस्कार घर से ही आते है। दूसरों को दोष देने से पहले खुद को देखें।