बंदर की जिज्ञासा और कील - Bander Ki Jigyasa Aur Keel | Hindi Moral Stories
एक व्यापारी ने एक मंदिर बनवाना शुरू किया और मजदूरों को काम पर लगा दिया। एक दिन, जब मजदूर दोपहर में खाना खा रहे थे, तभी बंदरों का एक झुंड वहाँ आ गया।
बंदरों को जो सामान हाथ लगता, उसी से वे खेलने लगते। एक बंदर को लकड़ी का एक मोटे लट्टे में एक बड़ी-सी कील लगी दिखाई दी।
कील की वजह से लट्टे में बड़ी दरार सी बन गई थी। बंदर के मन में आया कि वह देखे कि आखिर वह है क्या।
जिज्ञासा से भरा बंदर जानना चाहता था कि वह कील क्या चीज है। बंदर ने उस कील को हिलाना शुरू कर दिया।
वह पूरी ताकत से कील को हिलाने और बाहर निकालने की कोशिश करता रहा। आखिरकार, कील तो बाहर निकल आई लेकिन लट्टे की उस दरार में बंदर का पैर फँस गया।
कील निकल जाने की वजह से वह दरार एकदम बंद हो गई। बंदर उसी में फँसा रह गया और पकड़ा गया। मजदूरों ने उसकी अच्छी पिटाई की।
Moral of the story
शिक्षा : जिस बात से हमारा कोई लेना-देना न हो, उसमें अपनी टाँग नहीं अड़ाना चाहिए।