छोटी सी हमारी नदी
छोटी-सी हमारी नदी टेढ़ी मेढ़ी धार,
गर्मियों में घुटने भर भिगों कर जाते पार |
पार जाते ढोर-डंगर , बैलगाड़ी चालू ,
ऊँचे हैं किनारे इसके, पाट इसका ढालू |
पेटे में झकाझक बालू कीचड़ का न नाम,
काँस फूले एक पार ऊजले जैसे धाम |
दिन भर किचपिच-किचपिच करती मैना डार-डार,
रातों को हुआँ-हुआँ कर उठते सियार |
अमराई दूजे किनारे और ताड़-वन,
छाँहों-छाँहों बाम्हन टोला बसा है सघन |
कच्चे-बच्चे धार-कछारों पर उछल नहा लें,
गमछों-गमछों पानी भर-भर अंग-अंग पर ढालें |
कभी-कभी वे साँझ-सकारे निबटा कर नहाना,
छोटी-छोटी मछली मारें आँचल का कर छाना |
बहुएँ लोटे-थाल माँजती रगड़-रगड़ कर रेती,
कपड़े धोतीं, घर के कामों के लिए चल देती |
जैसे ही आषाढ़ बरसता, भर नदिया उतराती,
मतवाली-सी छूटी चलती तेज धार दन्नाति |
वेग और कलकल के मारे उठता है कोलाहल,
गँदले जल में घिरनी-भँवरी भँवराती है चंचल |
दोनों पारों के वन-वन में मच जाता है रोला,
वर्षां के उत्सव में सारा जग उठता है टोला |