सूरज दादा
सूरज दादा, सूरज दादा,
क्यों इतना गरमाते हो
हमने तुम्हारा क्या बिगाड़ा,
क्यों इतना गुस्साते हों।
सोकर उठते जब खटिया से
तुमको शीश नवाते हैं
हँसी-खुशी सारा दिन बीते
ऐसा रोज मनाते हैं।
दिन भर तुम इतना तपते,
गरम तमाचे जड़ देते हो
पशु-पक्षी व जीव जगत भी,
व्याकुल सबको कर देते हो।
वर्षा का जब मौसम आता,
ओट बादलों की ले लेते हो
उमड़-घुमड़ जब वर्षा होती,
आसमान में खो जाते हो।
जाड़े में तुम बच्चे बन,
सबको प्यारे लगते हो
हम भी बैठ खुले आँगन में,
तुमसे बाते करते हैं।
शाम ढले तुम चल देते हो
हम कमरों में छिप जाते हैं
ओढ़ रजाई ऊपर से हम
दुबक बिस्तरों में जाते हैं।