लोमड़ी और अंगूर की कहानी | Fox and Grapes | Hindi Bed Time Stories
एक जंगल में एक लोमड़ी रहती थी. एक दिन वह भूखी-प्यासी भोजन की तलाश में जंगल में भटक रही थी. भटकते-भटकते सुबह से शाम हो गई, लेकिन उसे कोई शिकार न मिला.
शाम होते-होते वह जंगल के पास के एक गाँव में पहुँच गई. वहाँ उसे एक खेत दिखाई पड़ा. भूखी लोमड़ी खेत में घुस गई. वहाँ एक ऊँचे पेड़ पर अंगूर की बेल लिपटी हुई थी, जिसमें रसीले अंगूर के गुच्छे लगे हुए थे.
अंगूर देखते ही लोमड़ी के मुँह से लार टपकने लगी. वह उन रस भरे अंगूरों को खाकर अपनी भूख मिटाना चाहती थी. उसने अंगूर के एक गुच्छे को देखा और जोर से उछली. ऊँची डाली पर लिपटी अंगूर की बेल पर लटका अंगूर का गुच्छा उसकी पहुँच के बाहर था. वह उस तक पहुँच नहीं पाई.
उसने सोचा क्यों न एक बार और कोशिश की जाए. इस बार वह थोड़ा और ज़ोर लगाकर उछली. लेकिन इस बार भी अंगूर तक पहुँच नहीं पाई. कुछ देर तक वह उछल-उछल कर अंगूर तक पहुँचने की कोशिश करती रही. लेकिन दिन भर की जंगल में भटकी थकी हुई भूखी-प्यासी लोमड़ी आखिर कितनी कोशिश करती?
वह थककर पेड़ के नीचे बैठ गई और ललचाई नज़रों से अंगूर को देखने लगी. वह समझ कई कि अंगूर तक पहुँचना उसने बस के बाहर है. इसलिए कुछ देर अंगूरों को ताकने के बाद वह उठी और वहाँ से जाने लगी.
वह अंगूर खाने का विचार त्याग चुकी थी. पास ही एक पेड़ पर बैठा बंदर उसे बहुत देर से देख रहा था. उसे जाते हुए देख वह खुद को रोक नहीं पाया और पूछ बैठा, “क्या हुआ लोमड़ी बहन? वापस क्यों जा रही हो? अंगूर नहीं खाओगी?”
लोमड़ी रुकी और बंदर को देखकर फीकी मुस्कान से साथ बोली, “नहीं बंदर भाई. मैं ऐसे अंगूर नहीं खाती. ये तो खट्टे हैं.”
सीख (Moral of the story)
जब हम किसी चीज़ को प्राप्त नहीं कर पाते, तो अपनी कमजोरियाँ को छुपाने उस चीज़ में ही कमियाँ निकालने लग जाते हैं. जबकि हमें अपनी कमजोरियों को पहचान कर उसे दूर करना चाहिए और सूझ-बूझ से काम लेकर तब तक कोशिश करनी चाहिए, जब तक हम सफल न हो जायें. दूसरों पर दोष मढ़ने से जीवन में कुछ हासिल नहीं होता. हासिल होता है : कड़े परिश्रम और प्रयासों से.