किसकी भैस - Kiski Bhains
पेवरा गांव के एक किसान ने अपने लिए एक भैस खरीद ने की सोची। वह एक दिन सुबह शहर चला गया। शहर का रास्ता बहुत ही लामा था, और घने जंगल से जाना पड़ता था। शहर में भैस खरीद ने के बाद वह घर की ओर रवाना हुआ।
सुनसान रास्ते में वह पैदल ही चला जा रहा था। बीच रास्ते में उसे एक चोर मिला। उसके हाथ में मोटा डण्डा था और शरीर से भी वो अच्छा तगड़ा था। उसने किसान को देखते ही कहा, “क्या भाई आज कल खेत में बहुत कमाई हो रही है? पर कोई बात नहीं यह भैंस तो मेरे साथ जाएगी।“
किसान ने झट कहा, “क्यों भाई? यह तो मैंने खरीदी है।” चोर बोला, “तो? जो कह दिया सो करो। भैंस छोड़ कर चुपचाप यहाँ से चलते बनो, वरना लाठी देखी है, तुम्हारी खोपड़ी के टुकड़े- टुकड़े कर दूँगा।
अब तो किसान का गला सूख गया। हालाँकि शारीरिक बल में वह चोर से कम नहीं था। पर खाली हाथ वह करे भी तो क्या करे? विपरीत समय में बुद्धिबल काम आया।
किसान बोला, “ठीक है भाई, भैंस भले ही ले लो, पर किसान की चीज यों छीन लेने से तुम्हें पाप लगेगा। बदले में कुछ देकर भैंस लेते तो पाप से बच जाते।”
चोर बोला, “यहाँ मेरे पास देने को क्या है?” किसान ने झट कहा, “और कुछ न सही, लाठी देकर भैंस का बदला कर लो।”
चोर ने खुश हो कर लाठी किसान को पकडा दी और भैंस पर दोंनो हाथ रख कर खड़ा हो गया। तभी किसान कड़क कर बोला, “चल हट भैंस के पास से, नहीं तो अभी तुम्हारी खोपड़ी के दो टुकड़े करूँगा।”
चोर ने पूछा, “क्यों?” किसान बोला, “क्यों क्या? जिस की लाठी उस की भैंस।” चोर को अपनी बेवकूफी समझ आ गयी और उसने वहाँ से भागने में ही भलाई समझी।
Moral of the story
जिसमें अक्ल है, उसमें ताकत है।