Հիմար արջ | բարոյական արժեքներ | Առցանց հինդի պատմություն երեխաների համար - Easyshiksha

मूर्ख भालू की कहानी | Հիմար արջ | Հինդի քնելու ժամանակի պատմություններ

एक जंगल में एक लालची भालू रहता था. वह हर समय ज्यादा की तलाश में रहता था. थोड़े से वह कभी संतुष्ट नहीं होता है. एक दोपहर जब वह सोकर उठा, तो उसे ज़ोरकका लग आई. वह भोजन की तलाश में निकल पड़ा.

उस दिन मौसम साफ़ था. सुनहरी धूप खिली हुई थी. भालू ने सोचा, «कितना अच्छा मौसम है. इस मौसम में तो मुझे मछली पकड़नी चाहििि. चलो, आज मछली की ही दावत की जाए։

առանց պատկերի

ये सोचकर उसने नदी की राह पकड़ ली. नदी किनारे पहुँचकर भालू ने सोचा कि बि मछली हाथ लग जाये, तो मज़ा आ जाये. उसने पूरी उम्मीद से नदी में हाथ डालाा मछली उसके हाथ आ गई. वह बहुत ख़ुश हुआ. लेकिन, जब उसने हाथ नदी से बाहर निकला, ाार कि हाथ लगी मछली छोटी सी है.

वह बहुत निराश हुआ. अरे इससे मेरा क्या होगा? बड़ी मछली हाथ लगे, तो बात बने. उसने वह छोटी मछली वापस नदी में फदेंक फिर से मछली पकड़ने तैयार हो गया.

առանց պատկերի

कुछ देर बाद उसने फिर से नदी में हाथ डा उसके हाथ फिर से एक मछली लग गई. लेकिन, वह मछली भी छोटी थी. उसने वह मछली भी यह सोचकर नदी में फेंक छोटी सी मछली से मेरा पेट नहीं भर पाये.

वह बार-बार नदी में हाथ डालकर मछली पकड हर बार उसके हाथ छोटी मछली लगती. वह बड़ी की आशा में छोटी मछली वापस नदी फेंक देता. ऐसा करते-करते शाम हो गई और उसके हाथ एक मछली नहीं लगी.

भूख के मारे उसका बुरा हाल हो गया. वह सोचने लगा कि बड़ी मछली के लिए मैंनन सारी छोटी मछलियाँ फेंक दी. उतनी छोटी मछलियाँ एक बड़ी मछली के बबरक सकती थी और मेरा पेट भर सकता था.

առանց պատկերի

सीख (Պատմության բարոյականություն)

«आपके पास जो है, उसका महत्व समझें. भले ही वह छोटी सही, लेकिन कुछ न होने सही ես»։

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